50 साल पहले अपर कास्ट और लोवर कास्ट मे बंटे थे कलाल इराकी: समी आजाद
50-60 वर्ष पहले दो गुरुप चलाता था। पहला अपर कास्ट, दूसरा था लोअर कास्ट। आजादी के बाद अपर कास्ट के लोग शिक्षा की बुनियाद पर हर फील्ड में आगे रहे। कलाल बिरादरी ना तो अपर कास्ट में था और ना ही लोवर कास्ट में था। उक्त बातें 1994 के एक सिपासलार समी आजाद ने कही। समी आजाद साहब उस वक्त की संस्था कलाल इराकी मिल्लत कमिटी के महासचिव जो अपने कार्य को बहुत ही बेहतर अंदाज में निभाया। समी आजाद ने कहा की मुझे याद है की अंसारी बिरादरी ने दावत दिया कलाल बिरादरी को। कि आप सब हमारे साथ शामिल हो जाए। उस समय सूझबूझ रखने वाले समाज के काम करने वाले कुछ कलाल के पास भट्टी था तो यह लोग अपने आप को अपर कास्ट से भी ऊपर का समझ रहे थे। इन लोगों ने कहा कि हम कलाल हैं, हम बाइकवर्ड में नहीं जाएंगे। उस समय हिंदू बिरादरी में एक जाती है बुनकर तांती। वह बिरादरी अपनी लड़ाई लड़कर अति पिछड़ा वर्ग bc1 में शामिल हो गया।
उसके बाद ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस ने भीअपनी लड़ाई शुरू की और कहा कि बुनकर का काम मेरा भी है इसलिए अंसारी बिरादरी को भी अति पिछड़ा वर्ग bc1 में शामिल किया जाए। तो उनको भी शामिल किया गया। 1990 के दशक में प्रोफेसर इलियास नवादा ने आवाज उठाया कि कलाल बिरादरी के हालात ख़राब है। यहां से एक तहरीक शुरू हुई, की कलाल बिरादरी को बैकवर्ड कास्ट में शामिल किया जाना चाहिए। पटना में मीटिंग हुई। छोटा नागपुर एरिया का इंचार्ज समी आजाद को बनाया गया। इस पर कैसे काम करना है एक खाका तैयार किया गया। प्रोफेसर शोएब अहमद शुएब, प्रोफेसर ईलियास, डॉक्टर हामिद हुसैन, बदीउल अख्तर, अली कलाल इन लोगों ने दौड़-धूप करना शुरू किया। और एक सर्वे हुआ। सर्वे के बाद एक मीटिंग हुई।
मीटिंग में पटना में दो ग्रुप बनी। एक ग्रुप इसका समर्थन किया तो दूसरा ग्रुप कि हमको बिरादरी वाइज नहीं करना है इसलिए हम साथ नहीं। शोएब अहमद शोएब ने समी आजाद को जो उस समय 40 ,42 वर्ष का नौजवान था उस को गले लगाते हुए उसके अंदर हिम्मत भरा, कि यह काम को करना है। समी आजाद पटना से रांची आ गए। और अपने दोस्त हाजी हलीम को सारी बात बताई। हाजी हलीम साहब ने कहा कि आप मेरे अब्बा समरू उल हक साहब से मिले। हमने मिला उनसे बात की तो समरूल हक साहब ने गुलशन हॉल कर्बला चौक में एक मीटिंग बुलाई। जिसमें गुड्डा भाई, शमीम कबाड़ी, नसीम हैदरी और आदि थे। नसीम हैदरी साहब उस समय जमीअतुल इराकीन रांची के अध्यक्ष थे। सारी बात सुनने के बाद नसीम हैदरी साहब बोले यह काम होना चाहिए, तो कल आना एक मीटिंग रखेंगे। कल मीटिंग हुई। सोंस के मौलाना अहमद अली कासमी, इटकी के मुस्ताक आदि को बुलाया गया इसके अलावा और कई लोग थे। उस मीटिंग में चर्चा चलने के बाद नतीजा निकला कि हमको सरकारी कोई फायदा नहीं चाहिए। हम लोग नीचे नहीं जाएंगे।
मीटिंग खत्म हुए। सब लोग बाहर निकल गए। शमीम कबाड़ी ने बोला कर कहा के काम होगा और समरूल हक को लेकर एक छोटी सी कमेटी बनी। इटकी के मास्टर मुस्ताक, मो सईद ने कहा कि यह काम होगा हम रांची में नहीं इटकी में करेंगे। और फिर तैयारी शुरू हो गई। डॉक्टर हामिद के बड़े भाई मुस्ताक अहमद मरहूम की एंट्री हुई। वह बोले अब बैठक घर से करेंगे। गुलशन हॉल छोड़ दो। मोहम्मद सिराज, पत्रकार मोहम्मद मुस्तकीम आलम ने साथ दिया। 1994 में नवादा से आवाज उठी। पटना में मीटिंग हुई। और कॉन्फ्रेंस रांची के इटकी में हुई। यह भी सोचने वाली बात है उस वक्त झारखंड अलग नहीं था। जितना तरह का कार्यालय सब पटना ही में था, काम पटना ही में होना था।
मुख्यमंत्री पटना ही में थे। जब सबकुछ पटना में था तो कॉन्फ्रेंस इटकी में क्यों हुआ। खैर कॉन्फ्रेंस कामयाब रहा और कलाल बिरादरी ओबीसी में शामिल किया गया। उसके बाद 2000 में झारखंड अलग हुआ और एक ऑर्डिनेंस आया जो बिहार में सहुलत मिल रही है वही झारखंड में मिलेगी। फिर एक मीटिंग हुई होटल सरताज में की झारखंड के लिए एक अलग कमेटी बनाई जाय। 2004 में झारखंड सरकार बैकवर्ड कास्ट का लिस्ट निकाला जिसमें कलाल बिरादरी का नाम नहीं था। उस वक्त मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी थे और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा थे। पटना वाले लोगो ने रास्ता बताया कि कमीशन को लिखकर दीजिए। हम ने लिख कर दिया और इस तरह अल हमदू लिल्लाह कार्य हो गया।
इसके अतिरिक्त इसका फायदा याने रिजर्वेशन का फायदा पड़ोसी राज्य बंगाल उड़ीसा आदि को हुआ अब अगर झारखंड में bc1 में कलाल बिरादरी आ जाता है इसका फायदा पड़ोसी राज्य को ही होगा।
0 Comments