बेटी या बहन को पैदा होते ही क्यों नहीं मार देना चाहिए?

 


बेटी या बहन को पैदा होते ही क्यों नहीं मार देना चाहिए? 

आदिल रशीद

आज के हालात को देखते हुए लगता है कि लड़कियों को पैदा होते ही मार देना चाहिए। जहां देखिये, जिस घर में सुनिए वहाँ हमारी बेटी हमारी बहनों के उपर जुल्म होता रहता है l वह लड़की जिसको घर में ईजत और फखर से पढ़ाते हैं, लिखाते हैं, उसकी देखभाल करते हैं ताकि उसे किसी तरह का तकलीफ न हो।इस बात का ख्याल रखते हैं l बड़े अरमान और खुशी से अपनी बहन अपनी बेटी की शादी कर देते हैं, शादी से पहले लड़का और उसके घरवाले कहते हैं कि हम उसे बेटी बनाकर रखेंगे, बहू नहीं। फिर शादी के बाद, वे इस लड़की को, इस बहन को, इस बेटी को अपनी  दासी समझने लगते हैं। वह दिन भर बानदियों की तरह घर में काम कराते हैं,तुम बाहर नहीं जा सकते। तुम फलां काम नहीं कर सकते वह लड़की, बहन, बेटी सब कुछ इस उम्मीद से सहती है कि सब ठीक हो जाएगा. वह लड़की बहन  बेटी घुट घुट कर सब कुछ बर्दाश्त करती है कि सब ठीक हो जाएगा। इस उमिद पर वह बर्दाश्त करती रहती है। ऐसा नहीं है कि लड़की अपने पति की बात नहीं मानती.  सास ससुर की आज्ञा का पालन नहीं करती है। आज्ञाकारिता उसके अंदर कुट कुट कर भरी  हुई है।

 लेकिन पति और उसके परिवार वाले इस लड़की को गुलाम समझते हैं। हमारे समाज के युवा एक ही बात जानते हैं: कि स्वर्ग है माँ के पैरों के नीचे। और पत्नी हमारी गुलाम है। हम पत्नी को केवल शारीरिक संतुष्टि की वस्तु मानते हैं। पत्नी के क्या अधिकार हैं, इससे  युवाओं को कोई मतलब नहीं है।
अल्लाह हम मुसलमानों पर रहम करे।  अधिकांश मुस्लिम समाज भोला भाला है।वह छल-कपट नहीं जानता।हमारी बेटी, बहन की शादी करनी है तो वे धार्मिक लड़के की तलाश करते है कि लडका दिनदार होगा तो अच्छा रहेगा।  वह इस्लाम धर्म से परिचित होगा, लड़का जमात में जाता है और हर  दामाद से बेहतर होगा। ऐसी सोच ही हमारे गलत है। 

अब तक अधिकांश धार्मिक युवाओं ने केवल यही सीखा है कि स्वर्ग है माँ के पैरों के नीचे और पत्नी हमारी गुलाम है। उन्होंने गुलाम खरीदे हैं और उन्हें हमारी बात माननी है। वह बात बात में लड़की को कोसते हैं। यह सामान तो कमजोर है। हमने यह  खरीदा है और यह 20 साल से चल रहा है।यह तो दो महीने में टूट गया है।ऐसा ऐसा मसला आता है कि लगता है आदमी  सिर पीट ले। ऐसी उम्मीद एक जमात के नौजवानों से नहीं रहती। ऐसे जमाअत में जाने वाले से समाज को सावधान रहना चाहिए। अपनी बेटी या बहन को ऐसे लोगों से हरगिज़ शादी ना करें। इस से तो आचछा होता है रिक्सा चालक। वह सुबह से शाम तक जो कमाता है हंसी खुशी अपने बीवी-बच्चे-के साथ खा पी कर खुश रहता है। रिक्शावाला कभी अपनी बीवी को गुलाम नहीं मानता। कभी उस पर हाथ नहीं उठाता। इन सब में सबसे अच्छा वही है न? जब एक बहन बेटी का फोन आता है, बेटी कहती है कि सामान खराब हो गया है, इस के लिए हमारे घर में सुबह शाम झगड़ा होता रहता है। सास जिधर से आती है चार बातें  सुना कर चली जाती है।  नन्द दुनिया भर की ताने है। वह सोचती है कि उसका पति अच्छा है, लेकिन ऐसा नहीं है।

 वह भी पढ़ा लिखा जाहिल है। ऐसी बातें सुन सुन कर तो यही लगता है  कि अपनी बहन, बेटी को पढ़ाने से अच्छा है कि उसे बचपन में ही मार दिया जाए। वह समाज में सामाजिक कार्य करने वालों को कितनी बार कहेगा कि आज हमारी बहन-बेटी के घर में झगड़ा हुआ है समझा बुझा दिजिए , एक दिन, दो दिन, लेकिन रोज ऐसा होता है, फिर इस सामाजिक आदमी को फोन करने की हिम्मत नहीं होती, रोज क्यों फोन करता है? उसकी बेटी, उसकी बहन हि बदमाश है। ऐसा नहीं है मेरे भाई। जिस घर में पली-बढ़ी तरबीयत पाई वह बदमाश नहीं है।  वह लड़की जानती है कि पति के क्या अधिकार हैं, सास के क्या अधिकार हैं। ससुर की सेवा कैसे करनी है। वह सबका साथ निभाना जानती है। यदि वह नहीं जानती है तो गाली देना। आज के समय में सुबह-शाम जो दस बार गाली दे वह ठीक है।। हर बात पर लोगों से बहस करें वह ठीक है। यदि वह यह नहीं जानती तो उसके लिए ससराल में रहना बहुत मुश्किल  है।

हमारे हिसाब से  इसमें कुछ हाथ उलमा कराम का है। वह शुक्रवार के दिन अपने संबोधन में माता-पिता की फजीलत पर घंटों बातें करते हैं।  स्कूलों और मदरसों में मां-बाप की अहमियत सिखाई जाती है। अच्छी बात है। लेकिन बीवी के हक़ क्या होते हैं ये मदरसे में नहीं बताया जाता और न ही हमारे ख़तीब इसे समझाना इस पर बात करना मुनासिब समझते हैं. यही वजह है कि मस्जिद के इमाम भी आज पत्नी को गुलाम समझा जाता है। जो हम एक बेटी, एक बहन के लिए पसंद करते हैं, वही हम बहू के लिए पसंद करते तो अच्छा होता। हमारे समाज के लोग देखते कि क्या वह जमात में जाता है या नहीं, पढ़ा लिखा है या नहीं। जबकि देखना चाहिए की वह अखलाक मन्द है या नहीं। उसका चरित्र सही है या नहीं।

Not: मानसिकता आज हमारे घर और समाज का ऐसा हो गया की अगर किसी घर में बेटी काम कर रही है और दामाद उस काम में हाथ बटा दिया तो मां कहती है मेरा दामाद बहुत अच्छा है। अगर वहीं बहु काम कर रही है और बेटा उस काम में हाथ बटा दिया तो मां कहती है जोरु का गुलाम हो गया है, शर्म नहीं आती है काम करने में फलां फलां और ना जाने किया किया बोलती है

 (लेखक उर्दू अखबार अवामी न्यूज के डिप्टी एडिटर हैं)

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