देश की आजादी के लिए मुस्लिम शिक्षाविदों ने पानी की तरह खून बहाया: मुफ्ती अब्दुल्लाह
रांची: देश की आजादी में मुस्लिम विद्वानों, शिक्षाविदो ने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के खिलाफ ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी है। इतिहास के पन्नों में उनकी भूमिका अहम है। ऐतिहासिक तथ्यों को नकारा नहीं जा सकता। उक्त बातें मुस्लिम मजलिस उलेमा झारखंड के केंद्रीय अध्यक्ष मुफ्ती अब्दुल्लाह अज़हर कासमी ने कहीं। वह गुरुवार को प्रेस बयान में कहा की अंग्रेजों ने व्यापार के बहाने भारत में परवेश करता है। दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देने और दोनों देशों के बीच वित्तीय स्थिरता बनाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से देश में प्रवेश किया। और वह देश के कई राज्यों के मालिक बन गए।वीडियो देखें
सिराज-उद-दौला ने बंगाल की भूमि पर ब्रिटिश सांप्रदायिक शक्ति के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। 1757 प्लासी की भूमि में सिराजुद्दौला अंग्रेजों के खिलाफ देश और जनता की रक्षा के लिए शहीद हो गया। उन्होंने देश के नाम और देश के प्यार में देश के नाम अपना खून दिया। मौजूदा पीढ़ी इस इतिहास से अनभिज्ञ है। मैसूर की धरती पर हैदर अली के बेटे सुल्तान फतेह अली उर्फ टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा बनाया और वतन की मिट्टी की रक्षा के लिए चार बार अंग्रेजों से लोहा लिया। भारत की भूमि पर संयुक्त राष्ट्रीयता के सिद्धांत के तहत टीपू सुल्तान ने विकास के सभी क्षेत्रों में सभी को बराबर हिस्सा दिया।प्रेम और भक्ति के साथ व्यवहार किया।
टीपू सुल्तान मैसूर जिले के 164, मंदिरों के लिए वार्षिक खर्च दान करता था। सुल्तान ने जो किया उसकी दुनिया के इतिहास में कोई मिसाल नहीं मिलती। सन् 1799 में वह अपनों की गद्दारी और अंग्रेजों की मक्कारी का शिकार हुआ। और जंग लड़ते हुए देश के लिए शहीद हो गया।
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टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों को ललकारा और जवाब दिया गीदड़ की सौ साला जिंदगी से शेर का एक दिन का जिंदगी बेहतर है। नई पीढ़ियों को इन तथ्यों से अवगत कराना समय की पुकार है। 1803 में, शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी ने अंग्रेजों के खिलाफ फतवा दिया। भारत के मुस्लिम विद्वानों, शिक्षाविदों और भारत के लोगों ने इस फतवे पर लब्बेक कहा।
दिल्ली देश की राजधानी है, जहां एक हजार से ज्यादा मदरसे, मकतब स्थापित था। अंग्रजों ने पहले इसे खत्म किया। 1832 सैयद अहमद शहीद बरेलवी और मौलाना शाह इस्माइल शहीद के नेतृत्व में बालाकोट की पहाड़ी भूमि पर युद्ध की घोषणा की गई और शहीद के सैनिकों ने तीन दिनों तक लगातार अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी और चिराग हमेशा के लिए बुझ गया।1857 ई शामली और अंबाला की भूमि पर अंग्रेजो के खिलाफ शाह वलीउल्लाह के शिष्यों ने हाजी इमदादुल्लाह महाजीर मक्की, मौलाना कासिम ननतावी, मुफ्ती रशीद अहमद गंगुही, हाफिज जामिन शहीद के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस अवसर पर मुग़ल साम्राज्य के अंतिम युवराज बहादुर शाह जफर ने देशव्यापी युद्ध का नेतृत्व किया और इस प्रकार मुग़ल युवराज का अंतिम सूर्यअस्त होने वाला था। अपनी प्राणों की आहुति दे दी मगर अंग्रेजों से क्षमा नहीं मांगी। जिसे बड़ों के संस्कार याद न हों, उसकी कोई पहचान नहीं है। वह जिसको बुजुर्गो की रिवायत ना रहे याद
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