होपवेल हॉस्पिटल में डायफ्रैग्मेटिक हाॅर्निया से पीड़ित मरीज का सफल ऑपरेशन
रांची। राजधानी के कर्बला चौक स्थित अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधायुक्त होपवेल हॉस्पिटल में प्रख्यात लेप्रोस्कोपिक जीआई सर्जन डॉ.शाहबाज आलम ने हजारीबाग निवासी 26 वर्षीय मरीज मनोज कुमार के डायफ्रैग्मेटिक हर्निया ( बाॅकडेलिक हर्निया) का सफल ऑपरेशन किया।
इस संबंध में शनिवार को होपवेल हॉस्पिटल में आयोजित प्रेसवार्ता में डॉ.शाहबाज आलम ने संवाददाताओं को बताया कि तकरीबन तीन महीने पूर्व हजारीबाग निवासी मनोज कुमार एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए थे। इसमें उनकी छाती और पेट में गंभीर चोट लगी थी । उन्होंने हजारीबाग में ही इसका प्राथमिक उपचार कराया। लेकिन कुछ दिनों के बाद मनोज के पेट में बांई ओर असहनीय पीड़ा होने लगी। पेट फूलने लगा। उसे नित्य क्रिया में भी असुविधा होने लगी। उल्टी की प्रवृत्ति हमेशा रहा करती थी। इससे परेशान मनोज कुमार के परिजनों ने होपवेल हॉस्पिटल में संपर्क किया। यहां डॉ. शाहबाज आलम की देखरेख में मरीज का अल्ट्रासाउंड कराया गया, तो पता चला कि पेट और छाती के बीच गंभीर चोट लगने से अंदर की झिल्ली क्षतिग्रस्त हो गई है। छाती और पेट के बीच का हिस्सा भी आंतरिक चोट से क्षतिग्रस्त हो गया है। प्राथमिक चिकित्सा के दौरान इसका पता नहीं चल पाया था। लेकिन बाद में जांच के बाद पता चला कि बड़ी आंत का एक हिस्सा छाती की ओर समा गया है। इससे फेफड़े भी संकुचित हो गए हैं। जिस वजह से उसकी बड़ी आंत में रुकावट पैदा होने लगी। पेट फूलने लगा। डॉ.शाहबाज ने बताया कि यदि समय पर शल्य चिकित्सा कर इसका इलाज नहीं किया जाता, तो आंतों में सड़न पैदा हो जाती और यह जानलेवा हो जाता । डॉ.आलम ने लेप्रोस्कोपिक सर्जरी द्वारा उक्त मरीज की चिकित्सा की और क्षतिग्रस्त आंत की लेजर सर्जरी की गई। अब मरीज पूरी तरह स्वस्थ है।
उन्होंने बताया कि इस प्रकार की जटिल शल्य चिकित्सा की सुविधा राजधानी रांची में नगण्य है। होपवेल हॉस्पिटल की स्थापना काल के पांच वर्षों के दौरान इस प्रकार की सर्जरी का यह पहला मामला उनके पास आया। जिसका सफल सर्जरी कर उन्होंने मरीज को राहत दिलाई। इस चिकित्सा में डॉ.शाहबाज आलम के साथ ऑपरेशन थिएटर की पूरी टीम और एनेस्थेसिया के डॉ.सतीश ने सहयोग किया। उन्होंने बताया कि छाती और आंत के बीच गंभीर चोट लगने से डायफ्रैग्मेटिक हर्निया डेवेलप होने की संभावना रहती है। जिसका इलाज अनुभवी व कुशल चिकित्सक की देखरेख में एकमात्र शल्य चिकित्सा द्वारा ही संभव है। उन्होंने बताया कि उनके अस्पताल में इस प्रकार का यह पहला केस है, जिसका सफलतम इलाज संभव हो सका।
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