पत्रकार की रिपोर्टिंग को सरकार के काम में रुकावट बताकर लगाया झूठा आरोप और किया गिरफ्तार
******** G S *********** राँची l झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा हमेशा पत्रकारों की सुरक्षा के बारे में बात की जाती है। जी हाँ, सिर्फ बात की जाती है। अगर सच में पत्रकारों को राज्य में सुरक्षा प्रदान की जा रही होती तो शायद पत्रकारों पर हमले नहीं होते। उन्हें झूठे मामलों में फंसाकर प्रताड़ित नहीं किया जाता। हाल ही में, रांची में 14 फ़रवरी को एक महिला आजाद पत्रकार पर झूठे आरोप लगाने का मामला सामने आया है। जिसमें पत्रकार को सरकारी काम में रुकावट डालने का झूठा आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया है। जिला मुख्यालय स्थिति सदर अस्पताल में कार्यरत नर्स ने पत्रकार नेहा और जयंती के खिलाफ कूटरचित साजिश के तहत स्वयं और एक नर्सिग के कर्मचारी के माध्यम से मुकदमा कायम करवा दिया। इस घटना से पत्रकारों में रोष है। दरअसल पत्रकार नेहा और जयंती अपने एक परिचित से मिलने रांची के सदर अस्पताल गये थे। उस पर पत्रकार ने अस्पताल की लचर व्यवस्था पर सवाल उठाये। इसके बाद तो जैसे अस्पताल में तूफान आ गया, मार पीट और फिर मुक़दमे तक बात पहुंच गई l जल्दबाजी में एक तरफा कारवाई करते हुए पत्रकारों को जेल भेज भेज दिया गया lझारखंड में बीते सालों में पत्रकारों पर जानलेवा हमले की खबरें सामने आयी थी। अधिकतर मामलों में पत्रकार को झूठे केस में फंसाया गया था। किसी को उसकी रिपोर्टिंग करने की वजह से झूठे मुक़दमे मे फंसाया गिया था। लेकिन पत्रकार का तो काम ही होता है न, रिपोर्टिंग के ज़रिये सच को सामने लाना। क्यों? फिर पत्रकारों के साथ यह होती घटनाएं क्या प्रशासन पर सवाल नहीं उठाती । जो पत्रकार को सुरक्षित रखने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है। लेखक उर्दू अखबार के संपादक हैं।
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