रांची (गुलाम शाहिद) इफ़्तार के पकवानों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है. अमूमन रोज़ा खजूर से ही खोला जाता है. दिनभर के रोज़े के बाद तरह- तरह के शर्बत गले को तर करते हैं. फलों की चाट इफ़्तार के खाने का एक अहम हिस्सा है.रांची के मुस्लिम बहुल इलाकों में शाम को इफ्तार के समय विभिन्न खाद्य पदार्थों की दुकानें लगती हैं। इफ्तार के बाद रात में तरावीह की नमाज के बाद लोग मंडियों में दिखाई देते हैं। रांची में यदि आप खास जायका ढूंढ़ रहे हैं तो कोई कमी नहीं है। इस शहर में एक से बढ़कर एक स्वाद हैं, लेकिन यहां की जलेबी की बात ही कुछ और है। यकीनन आपने कई जगहों पर जलेबियां चखी होंगी लेकिन यहां ऐकरा मस्जिद चौक पर हाजी शरीफ होटल की जलेबी एक अलग ही याद होती है।
इसी जगह पर करीब पिछले 60 वर्ष से जलेबी का एक ठेला लगता था । ठेले पर पहले एक आदमी बहुत लजीज जलेबी बनाता था। इसी जलेबी से दूर-दूर तक इसकी शोहरत थी। लेकिन अब उस शख्स के गुजर जाने के बाद उसका बेटा परवेज आलम इस ठेले को होटल में बदल दिया है। अपने पिता के कारोबार को आगे बढ़ा रहा है। आज भी यहां की जलेबी का स्वाद वही है। लोग इफ्तार के बाद बढ़-चढ़कर इनकी जलेबी और पुडी बड़ी चाव से खाते हैं ।हाजी शरीफ होटल के मालिक परवेज ने बताया 'हमारे जलेबी का स्वाद एकदम इमरती जैसा लगता है। हमारी दुकान पर इफ्तार के बाद 7 बजे से लेकर सहरी तक ग्राहक आते हैं और जलेबी खाते हैं।' जलेबी खाने आए शाहिद अयुबी का बोलना है 'मैं एकर मस्जिद चौक में जब भी आता हूं, इनकी जलेबी जरूर खाता हूं। बहुत टेस्टी जलेबियां हैं। हम काफी लंबे समय से यहां की जलेबी खाते चले आ रहे हैं।' । खास बात यह है कि यहाँ जलेबी संग तरकारी (सब्जी) की अनोखी जुगलबंदी होती है
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