निजी अस्पतालों की मनमानी पर अंकुश लगाए सरकार : दीपेश निराला

 


 विशेष संवाददाता 
रांची। सोशल जस्टिस एंड पब्लिक इंटरेस्ट फोरम के सचिव और जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता दीपेश निराला ने निजी अस्पतालों की मनमानी पर रोक लगाने की सरकार से मांग की है। उन्होंने एक प्रेस बयान जारी कर कहा है कि निजी अस्पताल प्रबंधन द्वारा मरीजों को लूटने का सिलसिला बदस्तूर जारी है मरीजों की आर्थिक स्थिति से बेपरवाह और सरकार से बेखौफ होकर निजी अस्पताल प्रबंधन मरीजों के परिजनों से मनमानी राशि वसूल रहे हैं। इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है जिसके कारण आम जनता निजी अस्पतालों के आर्थिक शोषण का शिकार हो रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार सभी प्राइवेट हॉस्पिटल में सभी सेवाओं और वस्तुओं का एक समान दर निर्धारित  करे। ताकि मरीजों को समान दर पर समान चिकित्सा सुविधाएं प्राप्त हो सके। 
उन्होंने कहा कि व्यक्ति की मूल आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान के बाद स्वास्थ्य और शिक्षा ही है, लेकिन आज जिस प्रकार स्वास्थ्य के क्षेत्र और शिक्षा के क्षेत्र का व्यवसायीकरण हुआ है, उससे कोई अछूता नहीं है।
सबसे ज्यादा कष्ट होता है निजी अस्पतालों में मिसमैनेजमेंट और पब्लिक फ्रेंडली नहीं होने पर।
आए दिन निजी अस्पताल बिल की भरपाई नहीं होने तक अपने यहां इलाजरत मरीज, जिसकी मृत्यु इलाज के दरम्यान हो गई है, उसके लाशों को रोक देते हैं और जब तक भुगतान नहीं होता है, तब तक लाश को रिलीज नहीं करते हैं। यह निजी अस्पतालों के संचालकों का अमानवीय चेहरा उजागर करता है। 
इसी प्रकार पैथोलॉजी से लेकर दवाई और सर्जिकल आइटम तक में मरीजों से मनमानी राशि ऐंठ ली जाती है।
 रूम रेंट से लेकर डॉक्टर का फीस, एडमिशन का फीस, डेवलपमेंट का फीस, कंसलटेंट का फीस, सभी तरह के जांच अस्पताल के ही निजी पैथोलॉजी से कराने होते हैं, सभी तरह की दवाइयां और सर्जिकल आइटम उन्हीं के यहां अवस्थित दुकानों से खरीदना पड़ता है। एमआरपी पर, ऐसे कई मद हैं जहां पर इलाज कराते कराते और उनका भुगतान करते करते मरीज और उसके परिजन बेहाल हो जाते हैं। 
उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि निजी अस्पतालों को नियंत्रित करें और उसमें सभी सेवाओं की दरों और वस्तुओं के दरों को निर्धारित करें ताकि हर जगह एक समान दर से भुगतान सुनिश्चित हो, और मरीज एवं उसके परिजन अपने आप को लूटे हुए महसूस न करें।
उन्होंने कहा कि 
विगत कोरोना काल में महामारी में इन निजी अस्पतालों का हाल देख लिया,
दोनों हाथों से कैसे इन्होंने बटोरा,
अधिकतर अस्पतालों में तो बेड ही नहीं था और ना ही आधुनिक इलाज के उपकरण मौजूद थे, बावजूद लोग पेमेंट लेकर खड़े थे, लेकिन उनका पेशेंट का एडमिशन तक नहीं हो रहा था।
इस प्रकार की लूट से अब केवल सरकार ही बचा सकती है, लेकिन सरकार भी कुछ करती नहीं दिख रही है, जोकि चिंता का विषय बना हुआ है।
अभी सभी निजी अस्पतालों सहित सभी कंपनियों को अपने सालाना टर्नओवर के मुनाफे का 2 प्रतिशत राशि जन सेवा के क्षेत्र में सीएसआर अर्थात कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत खर्च करना है, लेकिन उसका कितना सदुपयोग हो पा रहा है, यह सर्वविदित है।
लंबे समय से डॉक्टर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट की मांग कर रहे हैं, मेडिकल प्रोटेक्शन दिया जाए लेकिन पेशेंट प्रोटेक्शन एक्ट भी हो, और सबसे अधिक जरूरी है निजी अस्पतालों में सेवाओं और वस्तुओं के दरों को निर्धारित करने का, जिससे समान इलाज के लिए समान दर निर्धारित हो सके।

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